मिस यू पापा

रीना ने जल्दी-जल्दी सुबह का काम निपटाया और बेटे को स्कूल भेज दिया। पतिदेव की तबियत कुछ ठीक नहीं थी, इस लिए वो अभी सो ही रहे थे। इत्मिनान से अपनी चाय ली और किचन के दरवाजे पर ही बैठ गई; क्यों कि आज फिर से आँगन में कुछ गौरैया आयी थीं। वो चहकते हुए इधर-उधर फुदक रही थीं और वह नहीं  चाहती थी कि उसकी वजह से वो सब उड़ जाएँ, इस लिए वहीं बैठ कर उनको देखते हुए चाय पीने लगी। उसने धीरे से हाथ बढ़ा कर पास रखी थाली से थोड़े से चावल के दानें ले कर उनके आगे बिखेर दिया। पहले तो वो सब फुदक कर किनारे चली गयीं फिर चावल के दाने देख कर जल्दी-जल्दी अपनी नन्हें-नन्हे चोंच से चुनने लगीं। उनमें कुछ नन्हें चूजे भी थे जो शायद अभी उड़ना सीख रहे थे और घोसले से पहली बार दाना चुनने निकले थे। वो चूजे अपनी दाना चुगने की कोशिश कर रहे थे पर ज्यादातर नर और मादा गौरैया ही उनके चोंच मे दाना डाल रहे थे। रीना वहीं बैठी चुपचाप देख रही थी,उसका ध्यान नर गौरैया पर ज्यादा था। नानी बतातीं थीं कि नर गौरैया के गले में एक बड़ा सा काला धब्बा होता है जो मादा के गले पर नहीं होता। सारे दाने चुन लेने के बाद वह इधर-उधर फुदक-फुदक कर और दाने तलाश रहा था, चूजे उसके पीछे-पीछे फुदक रहे थे। रीना ने थाली से कुछ और चावल ले कर उनके सामने छिड़क दिया। वो फिर से अपनी नन्हीं चोंच से दानें चुनने लगे। उन्हें देखते-देखते  ना जाने क्या हुआ कि अचानक ही मन में पापा का ख्याल आ गया। उनका ख्याल आते ही दो बूँद आँसू आँखों से ढलक कर गालों पर लुढक चले और वह पापा के ख्यालों में बहती हुई बचपन में उतर गयी ।
सभी बच्चों में कुछ ना कुछ बुरी आदत होती है, उसमें भी थी। जब वह  कक्षा छ: में पढ़ती थी तो उसे पैसे चुराने की बुरी आदत हो गई थी । वह  रोज तैयार हो कर बैग पीठ पर लादती और बड़ी होंशियारी से पापा की पैंट की जेब में हाथ डाल कर जो भी फुटकर पैसे होते २५ , ५० या १ रुपया निकल लेती और स्कूल चली जाती। उस समय पापा स्नान कर रहे होते थे और मम्मी पूजा पर बैठी होतीं इस लिए उसका काम आसानी से हो जाता। स्कूल में वह उन पैसों से चूरन की खट्टी-मीठी गोलियाँ, कैथा, इमली, संतरे वाला कम्पट आदि खरीदती और मजे से खाती।
कुछ दिनों तक तो ये सब बड़े आरम से चलता रहा। मजे की बात ये कि उसे जरा भी एहसास नहीं था कि वह कोई गलत काम कर रही है ना ही उसे ये लगता कि पापा कभी ये सब जान पाएँगें। कुछ दिनों तक ये सब यूँ ही चलता रहा। एक दिन वह तैयार हो कर स्कूल के लिए निकलने लगी। मम्मी पूजा कर रहीं थीं उनके ठीक पीछे दीवार पर लकड़ी की खूँटी थी और पापा की पैंट उसी पर टंगी थी। रोज की तरह पापा स्नान कर रहे थे,  उसने धीरे से इधर-उधर देखा और पापा की जेब में हाथ डाल दिया। कुछ सिक्के उसकी मुट्ठी में आ गये, वह हाथ बाहर निकलने ही वाली थी कि तभी पापा बाथरूम से निकल कर बाहर आ गए। वह जहाँ खड़ी थी वहाँ से बाथरूम का दरवाजा साफ दिखाई देता था। अब वह और पापा एक दूसरे के आमने-सामने थे और हक्के-बक्के देख रहे थे एक दूसरे को।
उसका एक हाथ पापा के पैंट की जेब में ही था। उसकी इतनी हिम्मत नहीं  थी कि वह अपना हाथ जल्दी से बाहर निकाल ले। फिर क्या…! दोनों एक दूसरे को भौचक्के हो देखे जा रहे थे। एक ही पल में परिस्थिति बदल गयी थी।
पापा सारा माजरा समझ कर बोले – “अच्छा..तो तुम ही हो..जो मेरी जेब से पैसे गायब करती हो..रुको अभी बताता हूँ..! इतनी गन्दी आदत तुम्हारे अन्दर कहाँ से आई ? मैं भी कहूँ कि मेरी जेब के फुटकर पैसे कहाँ गायब हो जाते हैं ? रोज परेशान होता हूँ कि कहाँ खर्च दिए मैंने!”
पापा बड़बड़ाते जा रहे थे और कुछ इधर -उधर ढूंढ भी रहे थे। वह वहीं जड़वत खड़ी थी। मन ही मन थर-थर काँप रही थी । मम्मी भी सब समझ चुकी थीं। बार-बार सिर घुमा कर उसे कड़ी नजरों से देख रही थीं;पर वो पूजा से नहीं उठीं। पापा को एक पतली सी छड़ी मिल गयी। उसके पास आ कर उन्होंने उसके ऊपर छड़ी उठाई और कड़क कर पूछा, “फिर करोगी ऐसा..?”
उसने डर के मारे जोर से आँखें मूँद ली और काँप कर बोली — “नहीं ।”
वह आँखे बंद किये हुए ही छड़ी से लगने वाली चोट की प्रतीक्षा करने लगी;पर छड़ी तो पड़ी ही नहीं। थोड़ी देर बाद उसने डरते हुए अपनी आँखें खोली तो देखा कि पापा उदास बैठे हुए हैं और छड़ी ज़मीन पर पड़ी है। अब रीना को लगा कि उससे बहुत बड़ी गलती हो गई है; पर उस समय पापा से कुछ बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी वह । चुप-चाप अपराधी की भाँति वहीं खड़ी रही, थोड़ी देर बाद पापा ही बोले…—“आज के बाद मैं तुमसे बात नहीं करूँगा..तुम ऐसा करोगी..मुझे उम्मीद नहीं थी..।”
रीना को लगा कि पापा उसे दो चार छड़ी मार देते तो ज्यादा अच्छा था। वह उनसे बोले बिना कैसे रह पाएगी..! उस दिन स्कूल नहीं गई वह।
किसी तरह दो दिन बीत गये। उसे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था, पापा भी गुमसुम थे। उसने पापा को दुःख पहुँचाया था, अपनी गलती का एहसास हो गया था उसे। ऐसा लग रहा था कि पापा उसे जी भर के डांट लेते, दो चार छड़ी भी लगा देते पर यूँ चुप ना रहते..।
ये सजा उसके लिए असहनीय हो रही थी। इसी तरह तीसरा दिन भी बीत गया। पापा की चुप्पी उससे सहन नहीं हो रही थी। चौथे दिन उससे रहा नहीं गया, वह डरते-डरते पापा के पास गई और बोली..”सॉरी पापा..!”
पापा ने देखा; पर बोले कुछ नहीं।
रीना ने अपने दोनो कान पकड़ लिए और सिसकते हुए बोली .. “सॉरी पापा..! आगे से ऐसा कभी नहीं होगा..।”
“प्रोमिस..?” पापा ने पूछ लिया।
रीना ने कान पकड़े-पकड़े ही सिर हिला कर हामी भर दी।
उसके सिर हिलाते ही पापा ने उसे अपने सीने से लगा लिया और प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरते हुए उसे समझाने लगे…”आगे से कभी ऐसी गलती मत करना, चोरी करना बहुत बुरी बात होती है, तुम्हें पैसे की जरुरत हो तो मुझसे मांगो..।” और भी बहुत कुछ समझया पापा ने; पर वह तो पापा के सीने से लगी किसी और ही दुनिया में विचरण कर रही थी..।
पापा ने उसे क्षमा कर दिया था । उसके अंतर्मन से बोझ उतर गया था । उनके सीने से लग कर जिस सुकून की अनुभूति उसे हुई थी वो शब्दों में बयान नहीं कर सकती। पापा की दी हुई सजा का असर उस पर ऐसा हुआ कि आज तक उसने वो गलती दुबारा नहीं दोहराई यहाँ तक कि अपने पतिदेव की जेब में भी कभी हाथ नहीं डालती। उनकी जेब में गलती से कुछ नोट या सिक्के रह भी गये तो वो कपड़ो के साथ ही धुल जाते हैं। पता नहीं ये पापा की चुप्पी का असर है..उनके द्वारा उठाई गई छड़ी का डर..जो पड़ी नहीं थी उस पर..या उनकी दी हुयी सीख का प्रभाव..!
पापा का वो स्पर्श उसे बहुत याद आ रहा है आज..आँसू रुकने का नाम नहीं ले रहे.. अनायास ही उसके होंठ बुदबुदा उठे, “मिस्स यू पापा..अब भी मुझमे बहुत सी कमियाँ हैं..काश कि एक बार फिर से आप..!” बहुत कोशिश के बाद भी अपनी हिचकियाँ नहीं रोक पायी वह।
“रीना..!”
पतिदेव जाग गये थे और आवाज दे रहे थे। उसने जल्दी से आँसू पोंछा फिर उठ कर मुँह धोया, थोड़ा खुद  को संयत किया तब तक दोबारा आवाज आ गयी – “रीना..!”
अब पापा का साथ छूट चुका था । वह पतिदेव के कमरे की तरफ बढ़ गई। गौरैया और चूजे कब के उड़ चुके थे।

मीना पाठक
कानपुर
उत्तर प्रदेश

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